Sunday, March 4, 2012

Budget :- सरकार की नजर फिर सर्विस टैक्स पर है

नई दिल्ली. सरकार की नजर फिर सर्विस टैक्स पर है। यह सरकारी खजाने के लिए सबसे कमाऊ जरिया बन गया है। तीन सालों में इसके असर से सभी जरूरी सेवाएं दस फीसदी तक महंगी हो ही गई हैं। सरकार की चली तो वह बजट में 'निगेटिव लिस्ट' का प्रावधान ला सकती है। जिसमें सर्विस टैक्स का दायरा कई और सेवाओं तक बढ़ जाएगा।
 
फिलहाल करीब 120 सेवाएं सर्विस टैक्स के दायरे में हैं। अप्रत्यक्ष लगने वाले इस कर का असर कैसे आप की जेब तक पहुंचता है? इसे इस तरह समझा जा सकता है। आप रेस्टॉरेंट में आर्डर मीनू कार्ड देखकर देते हैं। ध्यान में आपका बजट भी होता है। लेकिन बिल आता है दस प्रतिशत महंगा होकर। ये है सर्विस टैक्स का असर। ये राज्यों के कर से अलग है। ऐसा ही हाल मोबाइल फोन रिचार्ज वाउचर, रेलवे टिकट, बिल्डर को रजिस्ट्री पूर्व भुगतान जैसे लेन-देन से जुड़ा है।
 
दिल्ली की टैक्स कंसल्टेंसी फर्म डीएसपी एसोसिएट्स के सीए अतुल जैन और जयपुर के सर्विस टैक्स एक्सपर्ट संजीव अग्रवाल बताते हैं कि सर्विस टैक्स के प्रावधानों में कई पेंच हैं। मामूली फर्क से सर्विस प्रोवाइडर टैक्स से तो छूट पा लेता है, जबकि ग्राहक से उस मद में पैसा वसूल लेता है। जैसे, वही रेस्टोरेंट सर्विस टैक्स वसूल सकते हैं, जिनके पास शराब बेचने का लाइसेंस हो। लेकिन कई रेस्टोरेंट मालिक लाइसेंस ले लेते हैं। लेकिन शराब नहीं बेचते। वे खाने और अन्य सेवाओं के लिए ग्राहकों से सर्विस टैक्स के मद में वसूली करते हैं। ये लाइसेंस रद्द हो जाने के बाद भी जारी रहता है।
 
सर्विस टैक्स: तीन साल में कमाई डेढ़ गुना
सर्विस टैक्स को 1994 से लागू किया गया। पिछले तीन सालों में इसमें कई सेवाओं को जोड़ दिया गया। 2008-09 में सर्विस टैक्‍स से 65 हजार करोड़ रुपए की कमाई हुई जो 2011-12 में बढ़कर 90 हजार करोड़ होने का अनुमान है। सभी अप्रत्यक्ष करों में सबसे ज्यादा वसूली सर्विस टैक्स से होती है।
 
जहां कमाई नजर आई, वही सेवा दायरे में
 
कोर्ट में हारने पर कानून बनाती है सरकार 
सरकार ने कुछ भवन मालिकों को किराया वसूलने पर सर्विस टैक्स देने को कहा। वे मामले को कोर्ट में ले गए। जहां सरकार हार गई। इस पर 2007 में सरकार ने कानून ही बदल दिया। गैरआवासीय उपयोग पर वसूला जाने वाला भवन का किराया सेवा कहा जाने लगा। ऐसा ही बिजनेस ऑक्सीलरी सर्विस को लेकर हुआ। सरकार हार गई तो उसने कानून बनाकर उसका नाम बिजनेस सपोर्ट सिस्टम कर दिया। 
क्योंकि सेवा की कोई परिभाषा ही नहीं 
हमारे देश में सेवा की कोई परिभाषा नहीं है। सेवा का निर्धारण भी अनूठे ढंग से किया जाता है। सरकार का ऑडिट विभाग जांच के बाद कुछ सर्विस प्रोवाइडरों को टैक्स का नोटिस देता है। मामला कोर्ट तक जाता है, जहां ज्यादातर मामलों में सरकार को हार का सामना करना पड़ता है।
बिजली, पानी और रोड ट्रांसपोर्ट ही बचा है 
सर्विस टैक्स के दायरे से बुनियादी सेवाओं जैसे बिजली, पानी और रोड ट्रांसपोर्ट को बाहर रखा गया है। लेकिन सरकार रेलवे को इसके दायरे में ला चुकी है। निजी अस्पतालों पर भी पिछले साल यह टैक्स लादा गया था। बाद में वापस ले लिया गया। 
निगेटिव लिस्ट : इस पर रहेगी नजर 
यदि विरोधियों का दबाव न रहा तो सरकार इस बजट में निगेटिव लिस्ट का प्रवधान ला सकती है। गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) में इसका प्रावधान है। इसमें सरकार अपनी तरफ से उन नियमों का ब्यौरा जारी करेगी, जिसके तहत सर्विस टैक्स नहीं देना होगा। इसका मतलब बाकी सेवाएं बिना कहे, सर्विस टैक्स के दायरे में आ जाएंगी।

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